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Tuesday, May 24, 2022

कोई वादा सरे बाज़ार

 

आज ज़ैनब को अलमदार बहुत याद आया

कोई वादा सरे बाज़ार बहुत याद आया


थरथरा उट्ठी ज़मी कांप उठा चर्ख़े कुहन

जब बंधी ज़ैनबो कुलसूम के शानों में रसन

बाज़ुए सय्यदे अबरार बहुत याद आयाआया


बीबियां सर खुले बाज़ारों में जब लाई गयीं

शाम की राहों में जब बर्छियां चमकाई गयीं

करबला तेरा ज़मीदार बहुत याद आयाआया


कहां बज़ारे सितम और कहां आले बुतूल

शहरे कूफ़ा में जो दाख़िल हुए सादाते रसूल

कूफाए हैदरे कर्रार बहुत याद आयाआया


ग़मज़दा बानों ने जब भी कोई झूला देखा

अपनी आगोश में रख्खा हुआ कुर्ता देखा

छे महीने का समझदार बहुत याद आया


बेड़ियां थाम के क़दमों को बढ़ाने वाला

सख़्तियां शाम की राहों में उठाने वाला

रास्ते रो दिए बीमार बहुत याद आया


आज फिर फैली है नयाब सितम की दहशत

आज फिर अहले जफ़ा मांग रहे हैं बैय्यत

आज फिर शाह का इनकार बहुत याद आया