आज ज़ैनब को अलमदार बहुत याद आया
कोई वादा सरे बाज़ार बहुत याद आया
थरथरा उट्ठी ज़मी कांप उठा चर्ख़े कुहन
जब बंधी ज़ैनबो कुलसूम के शानों में रसन
बाज़ुए सय्यदे अबरार बहुत याद आयाआया
बीबियां सर खुले बाज़ारों में जब लाई गयीं
शाम की राहों में जब बर्छियां चमकाई गयीं
करबला तेरा ज़मीदार बहुत याद आयाआया
कहां बज़ारे सितम और कहां आले बुतूल
शहरे कूफ़ा में जो दाख़िल हुए सादाते रसूल
कूफाए हैदरे कर्रार बहुत याद आयाआया
ग़मज़दा बानों ने जब भी कोई झूला देखा
अपनी आगोश में रख्खा हुआ कुर्ता देखा
छे महीने का समझदार बहुत याद आया
बेड़ियां थाम के क़दमों को बढ़ाने वाला
सख़्तियां शाम की राहों में उठाने वाला
रास्ते रो दिए बीमार बहुत याद आया
आज फिर फैली है नयाब सितम की दहशत
आज फिर अहले जफ़ा मांग रहे हैं बैय्यत
आज फिर शाह का इनकार बहुत याद आया