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Friday, May 20, 2022

रुख़ से इक बार कफ़न और

  



हाय हैदर के जनाज़े पे अजब मंज़र था

बेटियां क़दमों से लिपटी थीं बसद आहो बुका

बढ़के शब्बीर ने जो चेहरे से कफ़न बंद किया

देखकर भाई के चेहरे को ये ज़ैनब ने कहा


रुख़ से इक बार कफ़न और हटा दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


आज बाबा जो मेरे घर से चले जाएंगे

फिर मुझे शामे ग़रीबां में नज़र आएंगे

इतने दिन कैसे गुज़ारूंगी बता दो भइया


हाय शब्बीर से ज़ैनब ने कहा रो रोकर

सूना लगता है अमामे के बिना बाबा का सर

सर पे बाबा के अमामा तो सजा दो भइया


आ रही होगीं बक़ीहे से सदा सुनके मेरी

सर पे बाबा के न पड़ जाए नज़र अम्मा की

ज़ख़्म अम्मा की निगाहों से छिपा दो भइया


ख़ून बाबा की जबीं से वो गिरा था जिसपे

अपने बाबा की निशानी मैं बना लूंगी उसे

मेरे बाबा का‌ मुसल्ला मुझे ला दो भइया


जैसे अम्मा की रिदा में थी शिफा नाना की

क्या ये मुमकिन है कि उठ जाएं मेरे बाबा भी

मेरी चादर मेरे बाबा को उढ़ा दो भइया


कैसे बतलाएं ये दिल ग़म से फटा जाता है

क्या जुदा बाप से होकर भी जिया जाता है

अपनी बहनों को फ़क़त इतना बता दो भइया


ग़म में बाबा के तड़पता है ज़रा देखो तो

दूर बैठा है बुला लाओ मेरे गाज़ी को

पास कुछ देर तो बाबा के बिठा दो भइया


घर से जाता था जनाज़ा जो अली का बाहर

बीबियां कहती थी 'ज़ीशानो रज़ा' रो रोकर

आख़री बार तो बाबा से मिला दो भइया