हाय हैदर के जनाज़े पे अजब मंज़र था
बेटियां क़दमों से लिपटी थीं बसद आहो बुका
बढ़के शब्बीर ने जो चेहरे से कफ़न बंद किया
देखकर भाई के चेहरे को ये ज़ैनब ने कहा
रुख़ से इक बार कफ़न और हटा दो भइया
मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया
आज बाबा जो मेरे घर से चले जाएंगे
फिर मुझे शामे ग़रीबां में नज़र आएंगे
इतने दिन कैसे गुज़ारूंगी बता दो भइया
हाय शब्बीर से ज़ैनब ने कहा रो रोकर
सूना लगता है अमामे के बिना बाबा का सर
सर पे बाबा के अमामा तो सजा दो भइया
आ रही होगीं बक़ीहे से सदा सुनके मेरी
सर पे बाबा के न पड़ जाए नज़र अम्मा की
ज़ख़्म अम्मा की निगाहों से छिपा दो भइया
ख़ून बाबा की जबीं से वो गिरा था जिसपे
अपने बाबा की निशानी मैं बना लूंगी उसे
मेरे बाबा का मुसल्ला मुझे ला दो भइया
जैसे अम्मा की रिदा में थी शिफा नाना की
क्या ये मुमकिन है कि उठ जाएं मेरे बाबा भी
मेरी चादर मेरे बाबा को उढ़ा दो भइया
कैसे बतलाएं ये दिल ग़म से फटा जाता है
क्या जुदा बाप से होकर भी जिया जाता है
अपनी बहनों को फ़क़त इतना बता दो भइया
ग़म में बाबा के तड़पता है ज़रा देखो तो
दूर बैठा है बुला लाओ मेरे गाज़ी को
पास कुछ देर तो बाबा के बिठा दो भइया
घर से जाता था जनाज़ा जो अली का बाहर
बीबियां कहती थी 'ज़ीशानो रज़ा' रो रोकर
आख़री बार तो बाबा से मिला दो भइया