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Saturday, April 16, 2022

क़ाफ़ेला जा रहा है वतन के लिए

 

क़ाफेला जा रहा है वतन के लिए

करबला में क़यामत का इक शोर है


कोई रोती है अपने जवां लाल को

रो रही है कोई कम सुख़न के लिए


अपनी बरबादियों को गवारा किया

ख़ू में डूबे गुलों का नज़ारा किया

दे दिया फ़ातेमा का भरा गुलसितां

करबला तेरे उजड़े चमन के लिए


जब चले थे मदीने से सब साथ थे

औनो जाफर थे अकबर थे अब्बास थे

जा रहीं  हूं मदीने तो कोई नही

बस मुसीबत फ़क़त है बहन के लिए


कंब्रे क़ासिम से है यूं मुख़ातिब फ़ुफी

तेरी शादी कुछ इस तरह बन में हई

कोई सेहरे का भी फूल बाक़ी नहीं

वरना ले जाती क़ब्रे हसन के लिए


कोई चादर न थी कैसी बेज़ाद थी

हाथ होते हुए भी न आज़ाद थी

कितनी मजबूर कर दी गई थी बहन

अपने भाई के दफनो कफ़न के लिए


कस्रे ज़ालिम कभी क़ैदख़ाना कभी

नोके नेज़ा कभी ताज़ियाना कभी

कौन सी थी अज़ीयत जो दी न गई

हर जफ़ा थी असीरे मेहन के लिए