वफा जिसका पढ़े कलमा उसे अब्बास कहते हैं
जिसे सजदा करे सजदा उसे अब्बास कहते है
वो प्यासा प्यास ने जिसकी किया सैराब दरिया को
है जिसकी प्यास भी दरिया उसे अब्बास कहते हैं
जो है शब्बीर की कुव्वत अली को नाज़ है उस पर
जिसे ज़हरा कहे बेटा उसे अब्बास कहते हैं
लगा दे जो बिना तलवार ही अम्बार लाशों के
जो है पैकर शुजाअत का उसे अब्बास कहते हैं
जो पथ्थर पर अलम गाड़े उसे कहते हैं सब हैदर
अलम गाड़े जो पानी पर उसे अब्बास कहते हैं
अली का ख़ून ज़हरा की दुआ हसनै की चाहत
बने इन सब से जो मिलकर उसे अब्बास कहते हैं
जो हुक्मे शाह पर रोके रहा तलवार को अपनी
जो तन्हा भी रहे लश्कर उसे अब्बास कहते हैं
उठे तूफां चले आंधी ज़मीं गर्दिश करे फिर भी
रहे ऊंचा अलम जिसका उसे अब्बास कहते हैं
जो था शब्बीर का ख़ादिम मगर सब साहिबाने दिल
उसे आक़ा इसे मौला उसे अब्बास कहते हैं