🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम 🕊️
कैसे देखूं मैं तेरी मौत का मंज़र क़ासिम
हाशिमी जंग के अन्दाज़ दिखाना तुम भी
नाम इसलाम के दुश्मन का मिटाना तुम भी
तुम भी हो जानो दिले फातहे ख़ैबर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम -2
तेग़ चलती रहे और सब्र का एहसास रहे
मक़सदे हज़रते शब्बीर का भी पास रहे
तुम भी हो वारिसे एख़लाक़े पयंबर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम-2
आरज़ू दिल में थी रुख़ पर तेरे सेहरा देखूं
कब ये सोचा था तुम्हें ख़ून में डूबा देखूं
हसरतें सब हुई पामाल बरादर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम-2
रास आया ना तुझे भाई जो सेहरा सर पर
मन्नतें अपनी बढ़ा पाई ना तेरी मादर
रोएगी वो तेरे लाशे से लिपट कर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम-2
गर वतन लौट के तक़दीर में जाना होता
हाल सुग़रा को सुना देते तेरी शादी का
क्या करें एक सा है अपना मुक़द्दर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम-2
अब तेरे बाद कहां चैन के सामां होगें
हम भी कुछ देर में इस दश्त के मेहमां होगें
हम भी आ जाएंगे मकतल में बरादर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम-2
नौहा अमजद की ज़बा पर है यही शामो सहर
ख़ाक में मिल गए दोनो ही बरादर पैकर
मर्ज़िए हक़ पे फिदा हो गए अकबर क़ासिम
वक़ते रुक़सत कहा अकबर ने बरादर क़ासिम