🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ बड़ी बेकसी का ये आलम है बाबा कोई अब हमारा सहारा नहीं है 🕊️
भंवर में मेरी जिन्दगी का सफ़ीना मुक़द्दर में शायद किनारा नहीं है
तलाशे पिदर में भटकती हूँ कब से
बढ़े जा रहे हैं सितम के अंधेरे
ख़ुदाया दिखा आस के अब उजाले
है कौन ऐसा शोहदा सरे रज़्म मालिक
कि जिसका बदन पारा-पारा नहीं है
चली आई हूँ रन में बाबा से मिलने
उलझते हैं पांवों मे शोहदा के लाशे
लरज़ता है नन्हा सा दिल अब हवा से
फिराक़े शहेदीं में जिन्दा रहूँ मैं
मेरे दिल को हरग़िज़ गवारा नहीं है
जो था ऐतमादे हरम वो भी हाए
लबे नहर सोता है शाने कटाए
ये दुखिया मदद को किसे अब बुलाए
ब जुज़ नातवां एक भाई के या रब
जहां में कोई अब हमारा नही है
ये मालूम है आप को ख़ूब बाबा
कभी जिन्दगी में न आया वो लम्हा
कि नींद आ गई हो कभी मुझ को तन्हा
बता दीजिए फिर भला कैसे सोऊंगी
मैं जब कि सीना तुम्हारा नहीं है
कोई रहम खाता नहीं हाय मुझ पर
तड़पते हैं रुख़्सार पर अश्क़ गिरकर
नज़र में है आशूर का अब भी मंज़र
कोई भी नहीं है जिन्हे मैंने अब तक
मुसीबत में अपनी पुकारा नही है
तमाचों से नीले हैं रुख़सार मेरे
रुलाते हैं हर पल यतीमी के साए
तसल्ली भी देता नहीं कोई हाए
तेरे बाद बाबा नहीं कोई लम्हा
जिसे मैंने रो-रो गुज़ारा नहीं है
ऐ सज्जाद कैसे बयां हो वो मंज़र
दिले पैकरे सब्र तड़पा ये सुनकर
कहा जब सकीना ने रन में तड़प कर
है नन्हा सा दिल और ग़म इतने बाबा
मुझे ज़ब्त का अब तो यारा नहीं है