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Sunday, June 29, 2025

रुख़ से एक बार कफ़न और हटा दो भइया

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ हाय हैदर के जनाज़े पे अजब मंज़र था 🕊️

बेटियां क़दमों से लिपटी थीं बसद आहो बुका
बढ़के शब्बीर ने जो चेहरे से कफ़न बंद किया
देखकर भाई के चेहरे को ये ज़ैनब ने कहा


रुख़ से इक बार कफ़न और हटा दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


आज बाबा जो मेरे घर से चले जाएंगे

फिर मुझे शामे ग़रीबां में नज़र आएंगे

इतने दिन कैसे गुज़ारूंगी बता दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


हाय शब्बीर से ज़ैनब ने कहा रो रोकर

सूना लगता है अमामे के बिना बाबा का सर

सर पे बाबा के अमामा तो सजा दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


आ रही होगीं बक़ीहे से सदा सुनके मेरी

सर पे बाबा के न पड़ जाए नज़र अम्मा की

ज़ख़्म अम्मा की निगाहों से छिपा दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


ख़ून बाबा की जबीं से वो गिरा था जिसपे

अपने बाबा की निशानी मैं बना लूंगी उसे

मेरे बाबा का‌ मुसल्ला मुझे ला दो भइया

मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


जैसे अम्मा की रिदा में थी शिफा नाना की
क्या ये मुमकिन है कि उठ जाएं मेरे बाबा भी
मेरी चादर मेरे बाबा को उढ़ा दो भइया
मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया

कैसे बतलाएं ये दिल ग़म से फटा जाता है
क्या जुदा बाप से होकर भी जिया जाता है
अपनी बहनों को फ़क़त इतना बता दी भइया
मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया

ग़म में बाबा के तड़पता है ज़रा देखो तो
दूर बैठा है, बुला लाओ मेरे ग़ाज़ी को
पास कुछ देर तो बाबा के बिठा दो भइया
मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया


घर से जाता था जनाज़ा जो अली का बहार
बीबियाँ कहती थीं ज़ीशानों रज़ा रो रोकर
आख़िरी बार तो बाबा से मिला दो भइया
मेरे बाबा का मुझे चेहरा दिखा दो भइया