🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ उम्मुल मसायब ज़ैनब बिन गुफ़्ते 🕊️
शहरे अतश में ग़ुल है बपा
महलन महला यब्नज़्ज़हरा
ख़ैमा दर ख़ैमा है शोरो शैन
रन को चले हैं है है हुसैन
लुटने को है अब ज़हरा का चैन
क्योंकर करे न ज़ैनब ये बैन
शाहे उमम ने हैरत से मांगा
फिज़्ज़ा ले आई ज्यों ही वो कुर्ता
बिन्ते नबी ने जिसको सिया था
मंज़र ये ज़ैनब को ख़ून रुलाया
आबिद को ज़ैनब ने देके सहारा
ग़श से उठाया तो हैरत में पाया
बेटा पदर को न पहचान पाया
इस क़दर ख़ून से तर थे उफ़ मौला
उट्ठा जो बार बार ख़ैमे का परदा
पसे ख़ैमा एक महशर था बरपा
भइया से बिछड़ेगी अपने जो बहना
देखेगी कैसे ये फ़ातेमा ज़हरा
दुलदुल से बोली ये बाली सकीना
शह की सवारी सुन ले ये नाला
बाबा को मेरे रन में न लेजा
वासता देती हूं तुझको ख़ुदा का
बाबा का वादा जब याद आया
बाज़ुए ज़ैनब को मौला ने चूमा
गरदने सरवर का लेकर के बोसा
ज़ैनब ने वादाए मादर निभाया
जिस दम बना कर ख़ैमे में हल्क़ा
अहले हरम ने किया ये नौहा
ताबा फ़लक़ तक इसका था चर्चा
बहनों ने शह को लो रुक़सत किया था
तनहा खड़े थे रन में जो मौला
शह की मुसीबत पे दुलदुल भी रोया
ज़ैनब के लब पे उभरा ये नौहा
आओ सवार करूं तुमको ऐ भइया
बिछड़े जो हम से नाना के दिलबर
आकर मिलेंगे वो रोज़े महशर
अश्क़ो अज़ा भी कहते हैं रोकर