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Wednesday, August 10, 2022

अब्बास कहते है


अब्बास मीर ए लश्करम

अब्बास कहते हैं मुझे अब्बास कहते हैं.

मुझे अब्बास.


मैं क़मरे बनी हाशिम हूं सरदार हूं मैं लश्कर का

शब्बीर मेरा आक़ा है मैं बेटा हूं हैदर का

मसलक में वफादारी है मनसब में अलमदारी है

अब्बास कहते हैं.


ज़हरा ने कहा है बेटा है सारे अरब में चर्चा

शब्बीर के दिल की ताक़त हूं चांद बनी हाशिम का

मैं कर्बोबला का हैदर जिब्रील बचा ले शह पर

अब्बास कहते हैं


वो जाहो हशम रखता हूं शानों पे अलम रखता हूं

लो रोक सको तो रोको दरिया में क़दम रखता हूं

मैं हश्र बपा कर दूंगा सर तन से जुदा कर दूंगा

अब्बास कहते हैं


मुझको भी इमामत मिलती तौकीर मेरी बढ़ जाती

पी लेता जो शीरे ज़हरा कौनन में थी सरदारी

हूं अपने पदर का सानी पत्थर से निचोडूं पानी

अब्बास कहते हैं


तलवार है मेरे बाज़ू है मुझमे वफ़ा की ख़ुशबू

मैं देख नहीं सकता हूंज़ैनब की नज़र में आंसू

गर गैज़ में आकार देखूं पानी में आग लगा दूं

अब्बास कहते हैं


परचम ये मेरे बाबा का ता हश्र रहेगा उंचा

ख़ैबर में मिला बाबा को और आज है मैंने पाया

परचम न ये झुक पाएगा हर दौर में लहराएगा

अब्बास कहते हैं


बच्चो को तसल्ली देकर मैं आया हूं दरिया पर

बच्चों की आस न टूटे बस एक दुआ है लब पर

पानी जो न पहुंचाऊंगा ख़ैमो में नहीं जाउंगा

अब्बास कहते हैं


बे इज़्ने वेग़ा आया हूं तलवार नहीं लाया हूं

ठोकर में है मेरे पानी सह रोज का मैं प्यासा हूं

बहता है लहू बह जाये बस नामे वफ़ा रह जाये

अब्बास कहते हैं


जो तीर भी है तरकश में पेवस्‍त करो नस-नस में

पर मश्क पे वार ना करना फिर बात ना होगी बस में

बाज़ू भी कटा सकता हूं मैं खूं में नहा सकता हूं

अब्बास कहते हैं


अब्बास ए जरी का रौज़ा है एहले अज़ा का काबा

एक रोज़ रेहानो सरवर हमने भी ये मंज़र देखा

कहता है कोई दरिया पर सब जांए प्यास बुझाकर

अब्बास कहते हैं