हाय अम्मा अरे सुनो अम्मा अरे आपसे मैं बयान दिल का हाल करूं
दिल में उठता है जो इक सवाल करूं
क़ैद से जब रिहाई हरम पाएंगे
क्या मेरी क़ब्र पर फिर नहीं आएंगे
सिर्फ रंजो आलम मुझको तड़पाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
क़ैद से जब रिहा हराम पाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
क्या इसी क़ैद में घुट के मर जाऊंगी
क्या मैं दो गज़ कफन भी नहीं पाऊंगी
मैले कुर्ते में क्या मुझको दफ़नाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
सर से पांव तलक मैं लहू में हूं तर
मेरा ज़ख़्मों भरा ये बदन देख कर
सिर्फ़ ज़ालिम नहीं ज़ुल्म पछताएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
शाम वाले करेंगे अभी कुछ सितम
मुझको खाए चला जा रहा है ये ग़म
ये मेरी क़ब्र पे शिम्र को लाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
देख कर ज़ख्म बाबा के घबराई मैं
हश्र में बाप के पास जब आई मैं
देख कर मुझको बाबा भी घबराएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
कर्बला है कहां और कहां शाम है
न मुझे चैन ना उनको आराम है
वो मुझे करबला रोज़ बुलाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
कर्बला जाके बाबा से ये पूछना
हश्र में उनसे जब हो मेरा सामना
क्या मुझे अपने सीने से लिपटाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
कहना सुग़रा से अपना चमन मिल गया
हो मुबारक तुम्हें तो वतन मिल गया
हश्र तक हम मुसाफिर ही कहलाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
शाम में ही मेरी शाम हो जाएगी
ये कहानी अगर आम हो जाएगी
बाप बेटी से कब प्यार फ़रमाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे
हम न फ़नकार है और न एहले क़लम
है ये फरहानो शौकत पे उनका करम
हम से शब्बीर नौहा कहलवाएंगे
क्या मुझे छोड़ कर सब चले जाएंगे