आज़ादरो दुआ मांगो कोई ऐसे यतीम ना हो
जैसे सकीना यतीम हुई शाम के जिंदान में
जब सकीना को बाबा का सर मिला
लिपटा के सर को सीने से बच्ची ने ये कहां
खा गए शाम के ज़िदां में अंधेरे बाबा
किसको कहते हैं यतिमी ये सुना था मैंने
आप के बाद ये एहसास हुआ है बाबा
आप के बाद यतिमी की सज़ा पाई है
इतनी तन्हा हूं कि साया है न परछाई है
रात रो-रो के गुजराती है तो दिन मातम में
क़ैद ख़ाने मे यू हीं साल कटा है बाबा
जिंदगी मेरी दुखों से है इबारत बाबा
कैसी क़िस्मत ने दिखाई है मुसीबत बाबा
मैं जो रोती हूं तो लगते हैं तमाचे बाबा
आप की याद में रोना भी सज़ा है बाबा
अश्क आंखें से निकलते हैं लहू कानों से
अब दरिंदों से नहीं खौफ़ है इंसानो से
एक मजबूर यतीमा पर सितम ढाते हैं
मेरी तक़दीर में दुरों की जफ़ा है बाबा
आप की तरह से रूठे हैं उजाले बाबा
कौन ज़िदांन से अब मुझको निकाले बाबा
तून मांगा था दुआओं में ख़ुदा से जिसको
अब वही बेटी ही ज़िंदाने जाफ़ा है बाबा
कितने अरमां थे कि ज़िदां से मैं घर जाऊंगी
ऐसा लगता है यहीं रो रो के मैं मर जाऊंगी
ये सितमगार सकीना को कफ़न क्या देंगे
क्या कफ़न आपके लाशे को मिला है बाबा
बाबा कहते हैं ये जिंदां के अंधेरे मुझसे
मौत ही आएगी अब मुझको दिलासे देने
मेरी हर सांस ही रहती है सितम की ज़द पर
ऐसे जीने से तो मरना ही भला है बाबा
ज़ख़्म लाखों हैं कलेजे में दिखाऊं कैसे
मुझपे जो बीत रही है वो बताऊं कैसे
प्यास लगती है तो पी लेती हूं आंसू अपने
शिम्र के दुर्रे सकीना की गिज़ा है बाबा
लफ़्ज़ मज़हर ने जो लिख्खे हैं लहू रोते हैं
शादमां आंख से यूं अश्क़े अज़ा बहते हैं
ऐसा लगता है के ज़िंदां से सदा आती है
ऐसा नौहा मेरी ग़ुरबत पे लिखा है बाबा