बोली असमा से ये सय्यदा मेरे बच्चों को तुम पालना
प्यार माँ की तरह करना मेरे बच्चों को तुम पालना
आए आवाज़ तसवीह की जब तक मेरी
तुम समझना की ज़हरा है जिंदा अभी
मेरे हुजरे में आ जाना मेरे बच्चों को तुम पालना
मेरे हसनैन मस्जिद से आएं अगर
और पूछेंगे तुमसे कि मां है किधर
पहले खाना खिला देना मेरे बच्चों को तुम पालना
मेरे बिन दोनों खाना ना खाएं अगर
मुझसे मिलने की ख़ातिर वो रोएं अगर
उनसे शफ़क़त से पेश आना मेरे बच्चों को तुम पालना
मेरा छोटा पिसर मेरा लख़्ते जिगर
रात में उठ के पानी जो मांगे अगर
उसको पानी पिला देना मेरे बच्चों को तुम पालना
मेरा बेटा हसन मेरा नूरे नज़र
उसको हो रात में जब भी दर्द ए जिगर
सीना धीरे से सहलाना मेरे बच्चों को तुम पालना
आएं कुलसूम ज़ैनब जो रोती हुई
यानी मादर के ग़म में वो खोती हुई
तुम तसल्ली उन्हे देना मेरे बच्चों को तुम पालना
दर्द ए पहलू किसी से आयां न किया
सब्र करती रहीं उम्र भर सय्यदा
दर्द में फिर भी ये कहना मेरे बच्चों को तुम पालना
वक़्ते आखिर ये ज़हरा ने आसिफ कहा
गुस्ल देना मुझे शब में तुम मुर्तज़ा
शब में लाशा भी दफ़नाना मेरे बच्चों को तुम पालना