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Thursday, June 5, 2025

आजा अली असग़र

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ आजा अली असग़र 🕊️

गिरियाकुना है सारी दुनिया लाल मेरे तुझ पर


चारों तरफ वीराना है हर सिम्त उदासी छाई है
उजड़ी हुई बैठी हैं माएं कैसी क़यामत आई है
जल गए खै़मे अहले हरम हैं ख़ाक पे नौहागर

रूठे अगर हो मुझसे बेटा तुझको मनाएगी दुखिया
अपने कलेजे से लिपटाकर लोरी सुनाएगी दुखिया
तू ही मेरी पीरी का असा है नूरे नज़र दिलबर

आंखों से बहता है लहू और रुख़ पे उदासी छाई है
कैसे कहूं तुझ से ऐ बेटा मां ये बहुत दुख पाई है
जीना हुआ दुश्वार तेरी फ़ुरक़त में रो रो कर

अब न अकेले मां को छोड़ो ना इतना मजबूर करो
ख़ुद ही चली आएगी दुखिया मां को ज़रा आवाज़ तो दो
चांद सा चेहरा दिखलाओ ऐ लाल मुझे आकर

पलकों के साए में तुझे परवान चढ़ाया है मैने
धूप की शिद्दत से तुझको हर गाम बचाया है मैने
नींद तुम्हें किस तरहा आई ख़ाक के बिस्तर पर

जंगल है वीराना है और खै़मों से उठता है धुआं
रोता है क़िस्मत पे नसीबा रोते हैं दुर्रों के निशां
कैसे कफ़न दूंगी मैं तुझको सर पे नहीं चादर

उजड़े हुए ख़्वाबों के चमन को अब भी सजाती रहती हूं
तेरे तसव्वुर में हर पल हाथों को हिलाती रहती हूं
आके लिपट जा मेरे कलेजे से तू मां कहकर


मां की तड़प क्या होती है ज़ीशान क़लम से क्या लिक्खे
रूलवाते हैं अमजद अब भी मादरे असग़र के नाले

जब भी पानी सामने आया रोई कह कहकर