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Saturday, September 23, 2023

कहते थे अहले हरम

 


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से

कैद से जाते हैं हम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


खुल गई जंजीर सब खुल गया ज़िंदान भी

हो गए आज़ाद हम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


याद वतन की तुम्हें ख़ून रुलाती रही

जाते हैं देखो हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


सब्र की तुम हो इमाम कूफ़ा से बाज़ारे शाम

तुमने सहे कितने ग़म बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


छोटी सी इस उम्र में कितने बड़े ग़म सहे

हाय वो दर्दो अलम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


खुश्क़  गले में रसन कैसे भुलाएंगे हम

नन्हीं सी जां पर सितम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


सब ही वतन में रहें  तुम रहो परदेस में

कैसे सहोगी ये ग़म बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


क़ब्र अंधेरे में है कैसे चराग़ां करें

है बड़े मजबूर हम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


सुनके सदाये अख़ीं क़ब्रे सकीना हिली

रोने लगे सब हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


वक़्त रेहाई नक़ी नन्ही सी इस क़ब्र पर

कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से


कहते थे रोकर हरम बाली सकीना उठो घर चलो ज़िंदान से