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Wednesday, August 3, 2022

डाल दो कोई ज़ख़्मों पे चादर

 


डाल दो कोई ज़ख़्मों पे चादर

हाय! अकबर की मां आ रही है

सीना अकबर का रख्खो छुपाकर

हाय! अकबर की मां आ रही है


बिबियों मिलके हलक़ा बना लो

माँ जवां लाल की है संभालो

मर न जाए वो लाशे पे आकार

हाय! अकबर की मां आ रही है


देख लेगी अगर उम्मे लैला

अपने बच्चे का ज़ख़्मी कालेजा

सांस भी ले ना पाएगी मादर

हाय! अकबर की मां आ रही है


मन्नतें मानकर जिसको पला

उसके सीने में ज़ालिम का भाला

कैसे देखेगी मादर ये मंज़र

हाय! अकबर की मां आ रही है


जिसको दूल्हा बनाने के दिन थे

जिसकी शादी रचाने के दिन थे

उसको देखेगी मां ख़ून में तर

हाय! अकबर की मां आ रही है


कोई अरमान दिल का ना निकला

लुट गई उम्मे-लैला की दुनिया

बैन करने को लाशे-जवां पर

हाय! अकबर की मां आ रही है..


रख के ख़ैमे में अकबर का लशा

सर झुका कर बहुत रोए मौला

जब कहा बीबी फ़िज़्ज़ा ने रोकर

हाय! अकबर की मां आ रही है


बैन वाएज़ ये ख़ैमे में गूंजा

देख ले अपने यूसुफ़ का लाशा

ख़ाक उड़ाती हुई पीटती सर

हाय! अकबर की मां आ रही है