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Friday, August 5, 2022

अलम सजाओ किसी बेरिदा को

 


बिछा के फ़र्श ए अज़ा फ़ातेमा को याद करो

अलम सजाओ किसी बेरिदा को याद करो


सियाह कपड़े बदन पर हो सिर्फ इस ग़म में

रुके न आंख से आसू कभी मोहर्रम में

लिबास-ए-हजरते ज़ैनुलेबा को याद करो

अलम सजाओ किस


कभी सबील से पानी पियो तो ये कहकर

मैं तेरी प्यास पे क़ुर्बां हुसैन की दुख़तर

कभी सकीना कभी बा वफ़ा को याद करो

अलम सजाओ किस


गले में शाल ए अज़ा और हाथ सीने पर

अलम उठा के चलो यूं दहकते शोलों पर

जो बेकासो पे हुई उस जफ़ा को याद करो

अलम सजाओ किस


झूलाओ झूला किसी बे ज़बान का जब भी

तो याद करना ज़रा बेकासी वो बनो की

कभी रबाब की आहो बुका को याद करो

अलम सजाओ किस


ग़मे हुसैन मिला है तुम्हे मुक़द्दर से

सदा हुसैन के मातम की आए घर घर से

हुसैन हुसैन करो करबला को याद करो

अलम सजाओ किस


वो जिस ने दीन के ख़ातिर लुटा दिया घर को

ख़ुदा की राह में जिस ने कटा दिया सर को

पढ़ो नमाज़ तो उस ब ख़ता को याद करो

अलम सजाओ किस


अलम जो हजरते अब्बास का उठाते हैं

दिल ए बुतूल से लाखों दुआएं पाते हैं

अलम के सए में आओ दुआ को याद करो

अलम सजाओ किस


कभी ये सोच के तुम देखना फरहरे को

यही तो ज़ैनब-ए-मुज़तर की आस था लोगो

अलम को देखो तो उस बेरिदा को याद करो

अलम सजाओ किस


बहन के सामने दुल्हा बने कोई भाई

जो अपने भाई का सेहरा न देखने पाई

उसी गरीब बहन की सदा को याद करो

अलम सजाओ किस


खुदा न खास्ता किस्मत ये दिन जो दिखलाए

किसी जवां को जवानी में मौत आ जाए

तो हम शबीहे नबी की कज़ा को याद करो

अलम सजाओ किस


जो क़त्ल-गाह को बालो से झाड कर रोई

सदा है मज़हरो इरफ़ान ये उसी माँ की

मेरे ग़रीब मेरे बे-ख़ता को याद करो

अलम सजाओ किस